भारतीय समाज में महिलाओं का स्थान-छत्तीसगढ़ के संदर्भ में

 

डाॅ. आर. प्रसाद1, डाॅ. रजिन्दर कौर2

1निर्देशक (अर्थशास्त्र), कुलपति, सन्त गहिरा गुरू विष्वविद्यालय सरगुजा, अमबिकापुर (..)

2अतिथि व्याख्याता (अर्थशास्त्र), स्व. ठाकुर महाराज सिंह कला एवं विज्ञान महाविद्यालय, थाना खम्हरिया जिला-बेमेतरा (..)

2शोध छात्रा, पं रविषंकर शुक्ल विष्वविद्यालय, रायपुर (..)

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छत्तीसगढ़ प्रारंभ से ही विषम भौगोलिक परिस्थितियों तथा संघर्ष पूर्ण इतिहास की भूमि रहा है। यहां के विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक धार्मिक, राजनीतिक ऐतिहासिक तत्वों में एक ओर जहां महिलाओं की गरिमा को बढ़ाया है, वहीं दूसरी ओर इनकी स्थिति को विषम बनाने में भी सहायक भूमिका अदा की है। महिला विकास हेतु अनेक योजनाओं के माध्यम से सुधार का प्रयास किया गया है। जिसमें भारतीय समाज में महिलाओं के स्थान को दर्शाया गया है।

 

 

ज्ञम्ल्ॅव्त्क्ैरू  धार्मिक परम्पराएं अंधविश्वास,         शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति, स्वास्थ्य की दृष्टि से महिलाओं की स्थिति, महिलाओं की आर्थिक स्थिति, राजनीतिक स्थिति

 

 

 

 

प्रस्तावनाः-

भारत का सविधान पुरूषों एवं महिलाओं को समान अधिकार मान्यता प्रदान करता है किन्तु महिलाओं की भूमिका क्रिया क्षेत्रों में भेद स्वीकार करता है। संविधान गत समानता की व्यवस्था के पश्चात महिलाओं की स्थिति संवैधानिक दृष्टि से तो सुदृढ़ हो गई है किन्तु वास्तविक रूप में आज भी महिलायें शोषण एवं उत्पीडन का शिकार बनी हुई है। परिवर्तनशील समाज में महिलाओं की स्थिति को निम्नलिखित आधारों पर विश्लेषित किया जा सकता है।

 

महिलाओं की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिये उनकी सामाजिक रूपरेखा को जानना अति आवश्यक है। भारतीय महिलाओं की सामाजिक स्थिति को संविधान और विधि द्वारा प्रदत्त स्थिति और भूमिकाओं तथा सामाजिक-परम्पराओं द्वारा थोपी गई स्थिति और भूमिकाओं के बीच की इस दरार का एक विशिष्ट उदाहरण माना जा सकता है। महिलाओं की सामाजिक स्थिति भूमिका को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्व इस प्रकार है:-

 

1.   धार्मिक परम्परायें अंधविश्वास ने भारत में सामाजिक एवं धार्मिक रूप से महिलाओं को निकृष्ट समझा है अर्थात पुरूषों की तुलना में उन्हें कम सम्मान प्रदान किय है। यह माना गया है कि महिलाये प्राकृतिक दृष्टि से पुरूष से कमजोर है अतः उसका परम कर्तव्य पुरूष की सेवा करना ही माना गया है।

 

महिलाओं के द्वारा पुत्र को जन्म देना गौरव की बात माना गया है कि किन्तु पुत्र के जन्म होने पर उसे अत्याधिक रूप से अपमान और तिरस्कार सहन कर करना होता है। विधवाओं को किसी भी धार्मिक सामाजिक कार्य में भाग लेने की अनुमति नहीं दी गई ताकि वह अन्य व्यक्तियों के दुभाग्य की संवाहिका बन जायं 1856 में पुनर्विवाह को कानून द्वारा विधिक मान्यता प्राप्त हो जाने पर भी विभिन्न समाजों में आज तक विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति नहीं दी गई।

 

आज यदि हम वर्तमान परिवेश की बात करे तो महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार दिखाई दे रहा है प्रत्येक धर्म और समाज उनकी शिक्षा और जागरूकता पर ध्यान दे रहा है। राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर जो प्रयास हो रहे है। उनका प्रभाव भी अब नगर रहा है।

 

विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों की महिलाये ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अभी अधिक जागरूक और शिक्षित हो रही है तथा और अपनी पुरानी रूढ़ीवादी परम्पराओं पर स्वयं प्रहार कर रही है। जो कि भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के लिये अच्छा संकेत है।

 

2.   शिक्षा की वह कुंजी है जीवन के सभी द्वारा खोल देती है। गांधी जी ने कहा था कि एक लड़की की शिक्षा एक लड़के की शिक्षा की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि एक लड़की की शिक्षा से पूरा परिवार परिवार शिक्षित हो जाता है। पहले पुरूषों की शिक्षा को अधिक महत्व दिया जाता था और महिलाओं के शिक्षा प्राप्त करने पर पांबदी लगी हुई थी। रूढ़ीगत परम्पराओं के चलते महिलाये वर्षों तक शिक्षा से वंचित रही। 1991 की संगणना के अनुसार भारत में पुरूषों की साक्षरता दर 60.13 प्रतिशत महिलाओं की केवल 29.75 प्रतिशत थी। किन्तु आज राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर शिक्षा के प्रति जो जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है जैसे कि बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं इसका असर महिलाओं की तरक्की पर विशेष रूप से हुआ है। पहले स्कूल और कालेज की सुविधायें केवल बड़े शहरो तक सीमित थी। स्कूल और कालेज बहुत दूर-दूर हुआ करते थे। किन्तु आज प्रत्येक 2-3 कि.मी. के दायरे में स्कूल खुलने से महिलाओं के साक्षरता का प्रतिशत प्रतिवर्ष निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है।

 

3.   स्वास्थ्य की दृष्टि से महिलाओं की स्थिति

कुपोषण का महत्वपूर्ण कारण स्त्री पुरूष के आहार में भिन्नता का पाया जाना है। अधिकांश परिवारों में महिलाओं को जहां अधिक क्रियाकलापों का संपादन करना पड़ता है, उनकी खुराक पर अर्थात पोषण पर पुरूषों की अपेक्षा बहुत कम ध्यान दिया जाता है। किसी भी परिवार में जब कोई महिला कुपोषित हो जाये तो समझो की उस परिवार की आने वाली पीढ़ी पर भी इसका असर होता है और यह स्थिति हमारे यहां दूरस्त ग्रामीण अंचलो में निवास करने वाले परिवारों पर अधिक प्रभाव डालती है क्योंकि वहां पोषण के साथ साथ स्वास्थ्य सेवाओं का भी अभाव होता है।

 

4.   महिलाओं की आर्थिक स्थिति -

महिलाओं की आर्थिक स्थिति को आजकल समाज की स्थिति के विकास के रूप में स्वीकार किया जाता है क्योंकि महिलाये प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक क्रियाओं में अपना योगदान देती है। वे समस्त पारिवारिक दायित्वों का बोझ स्वयं उठाकर पुरूषों का केवल आर्थिक क्रियाएं संपादित करने का पूरा समय अवसर प्रदान करती है। आज भागीदारी की दृष्टि से कृषि, पशुपालन व्यवसाय, हैण्डलूम आदि में महिलाओं के अनुपात में काफी वृद्धि हुई है। वर्तमान परिवेश में नजर डाले तो अब महिलायें टेली कम्यूनिकेशन, इंजीनियरिंग, विधि संबंधी, चिकित्सा संबंधी, प्रशासनिक क्षेत्र यहां तक की सेना में भी अपनी सेवायें देने आगे रही है। जिसके कारण उनका जीवन स्तर अब ऊपर उठने लगा है और वह पुरूषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर सहयोग कर रही है। शिक्षित होकर महिलाये अब परिवार, राज्य तथा राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना और अपने देश का नाम रौशन कर रही है तथा राष्ट्र का आर्थिक रूप से मजबूती प्रदान कर रही है।

 

5. राजनीति स्थिति -

महिलाओं की राजीनीतिक स्थिति इस बात से जानी जा सकती है कि सत्ता के स्वरूप निर्धारण और उसके भाग लेने के मामले में उन्हें कितनी समानता और आजादी प्राप्त है। महिलाओं की राजनीतिक समता की प्राप्ति में जिन दो प्रमुख शक्तियों ने उत्पे्ररको का काम किया वे थी राष्ट्रीय आंदोलन और महात्मा गांधी का नेतृत्व। 1917 में श्रीमती सरोजनी नायडू के नेतृत्व में भारतीय महिलाओं के एक प्रतिनिधि मंडल ने ब्रिटिश संसद में पुरूषों के साथ समता के आधार पर महिलाओं के मताधिकार दान के लिये मांग पेश की इसका असर यह हुआ कि 1921 के सुधार अधिनियिम ने केवल उन गृहणियों को मताधिकार दिया जो संपन्न तथा शिक्षित थी।

 

भारत में महिलाओं का विकास -

विकास वह दषा है जिसे लोगों के जीवन की परिवर्तन प्रक्रिया में उनके कल्याण का उच्चतर जीवन स्तर आदि उद्देष्य की प्राप्ति हेतु प्रयुक्त किया जाता है एक ऐसी बहुआयामी प्रक्रिया है जो प्रजातांत्रिक राष्ट्र के लोंगों की आषा आकांक्षाओं से संबंधित होती है। शोधकर्ताओं के अनुसार महिला पुरूष पर विकास के प्रभाव में भिन्नता दिखाई गई है। उनके अध्ययनों से विदित हुआ कि विकास प्रभावों की इस भिन्नता के कारण समाज परिवार में महिलाओं का विषिष्टकरण हुआ है। जहां महिलाये अभी तक परिवार के लिये आर्थिक क्रियाओं के संपादन के बावजूद भोजन बनाना, सफाई करना, बच्चों की देखभाल करना आदि से संबंधित कार्यों का संपादन करती है ऐसे में कार्यक्रमों की क्रियान्विति का अर्थ केवल परिवार की आय में वृद्धि से ही लिया जाता है कि अनिवार्य रूप से महिलाओं की स्थिति में सुधार से।

 

सकारात्मक परिवर्तन-

महिलाआंे की स्थिति विकास को प्रभावित करने वाले सकारात्मक परिवर्तन इस प्रकार है-

1.   म्हिलाओं की विवाह के समय आयु 1971 में 17.2 वर्ष की तुलना 1981 में 18.3 वर्ष हो गई, इस दृष्टि से प्रथम बार औसत लक्ष्य को प्राप्त किया गया।

2.   महिलाआंे के कार्यक्रमों में ध्यान कल्याण की अपेक्षा विकास दर दिया जाने लगा है। इस परिवर्तन का परिणाम महिला विकास हेतु पृथक विभाग की स्थापना के रूप में भी देखा जा सकता है।

3.   राष्ट्रीय षिक्षा नीति (1980) की क्रियान्विति के कार्यक्रम में महिलाओं की समानता पर बल दिया गया और पहली बार विषेष ध्यान देने हेतु तीन क्षेत्रों को चुना गया।

() लिंगानुसार पक्षपात हटाने हेतु विद्यालय की पुस्तकों का अवलोकन तथा विद्यालय के पाठ्यक्रम में समानता को बढ़ावा देने हेतु विकासषील अभिगम प्रयुक्त किया जाना।

()अध्यापन में लिंगानुसार समानता को बढ़ावा देने हेतु अध्यापको का रिओरिएन्टेषन।

()उच्च षिक्षा की अध्यापन गतिविधियों तथा शोध अनुसंधानों में महिलाओं के उत्साह को बढ़ावा।

4.   समाज में चेतना तथा व्यवहारगत परिवर्तन लाने हेतु विद्यार्थी अध्यापाको को स्रोत के रूप में प्रयुक्त करने के उद्देष्य से अनेक विष्वविद्यालयों के संघटक महाविद्यालयों में महिला अध्ययन केन्द्र की स्थापना की गई है।

5.   प्रधानमंत्री के कार्याकल से महिलाओं के लिये 27 लाभदायक मंत्रालयों तथा महिला बाल विकास विभाग, मानव संसाधन विभाग आदि द्वारा संचालित की जा रही है।

6.   प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में महिलाओं के लिये एक राष्ट्रीय सलाहकार समिति की स्थापना की गई है।

7.   स्वतंत्रता प्राप्ति के पष्चात् पहली बार संसद में निर्वाचित महिलाओं का प्रतिनिधित्व कुल सदस्यों का 10 प्रतिषत हो गया था जिसे अब बढ़ाकर 30 प्रतिषत किया जा रहा है।

8.   म्हिलाओं की स्थिति रूचियों के संरक्षण हेतु अनेक विधेयक तथा संषोधन अस्तित्व में आये है।

9.   भारत शासन द्वारा पूरे देष के 100 चयनित जिलों में बेटी बचाओं-बेटी पढ़ाओं योजना दिनांक- 22 जनवरी, 2015 से लागू की गई है इसी के तहत .. में रायगढ़ जिले का चयन किया गया है इस योजना का उद्देष्य इस प्रकार है-

() बच्चों के जन्म के समय लिंग चयन तथा विभेद को समाप्त करना।

() बालिकाओं की उत्तरजीविका उनकी सुरक्षा सुनिषिचत करना।

() बालिकाओं की षिक्षा को सुनिष्चित करना।

10. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना-देष के सभी जिलों में 01 जनवरी, 2017 से लागू किया गया है।

11. सखी योजना-घर के भीतर तथा घर के बाहर अथवा किसी भी रूप में पीडित संकटग्रस्त महिला को आवष्यकतानुसार सुविधा/सहायता तत्काल उपलब्ध कराते हुये जरूरतमंद महिला को चिकित्सा, विधिक सहायता, मनोवैज्ञानिक सलाह, मानसिक चिकित्सा परामर्ष सुविधा एक ही छत के नीचे उपलब्ध कराना है .. प्रदेष में भारत का पहला वन स्टाॅप सेंटर रायपुर में 16 जुलाई, 2015 से प्रारंभ किया गया है शेष सभी जिलों में 10 मार्च, 2017 से वन स्टाॅप सेंटर प्रारंभ किया गया है।

12. राज्य की बेटियों को सक्षम बनाने तथा उनका आर्थिक आधार मजबूत करने शिक्षा स्तर बढ़ाने तथा कन्या भ्रूण हत्या की रोकथाम हेतु सरकार ने नोनी सुरक्षा योजना लागू की है। योजना के तहत बालिका के 18 वर्ष पूर्ण होने तथा 12 वीं कक्षा उत्तीर्ण होने पर एक लाख रूपये की राशि दिये जाने का प्रावधान है।

 

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि इक्कीसवीं सदी के प्रवेश द्वार की दहलीज पर खड़े भारत वर्ष तथा छत्तीसगढ़ में आज महिलाओं की स्थिति में काफी कठिनाईयों के बावजूद निरन्तर सुधार हो रहा है और महिलाये पुरूषों के समान अपने अधिकारों के लिये सजग होकर शासकीय योजनाओं का लाभ उठाने में कामयाब दिखाई दे रही है जिसका प्रभाव परिवार, समाज, देश तथा राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में सकारात्मक रूप से दिखाई दे रहा है।

 

संदर्भ:-

1.   शर्मा कुमुद वुमन एण्ड डेव्टपमेन्ट: इन सर्च आॅफ कान्सैपचुअल फ्रेमवर्क, साक्या शक्ति, प्,       1983

2.   सिंह कमला: तुमन इन्टरपे्रनियर्स कैनरा बैंक जन-गण स्कीम, जयपुर 1992.

3.   रेड्डी सत्यनारायाण एण्ड रेनुका, सी: द्वाकरा बुन फाॅर रूलर तुमन योजना 38(22)1994/17

 

 

 

Received on 15.01.2019                Modified on 05.02.2019

Accepted on 18.02.2019            © A&V Publications All right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(1):53-56.